रविवार, 2 मार्च 2014

आदिम धरती के फूल...!

वर्षों पहले एक बूढ़ा नदी के तट पर लकड़ी के लट्ठों से बनी अपनी कुटिया में रहता था, तब हर दिशा में सिर्फ बर्फ ही बर्फ और बूढ़े के पास तन ढांकने के लिये फर का एक मोटा लबादा हुआ करता, बस ! लकड़ी के लट्ठों के दरम्यान मौजूद सूराखों के रास्ते से, हाड़ कंपकपाने वाली बेहद सर्द हवा, अक्सर उस बूढ़े की कुटिया की स्थाई मेहमान हो जाया करती थी, वो अक्सर कुटिया से बाहर की झाड़ियों, दरख्तों में, पनाह लेने वाले परिंदों को जमा देने / हिमीकृत करने के लिये ढूंढती रहती या फिर बुरी आत्माओं का पीछा करते हुए पर्वतीय ऊंचाइयों, गहरे खड्डों और दलदली भूभाग में भटकती रहती ! अपनी कुटिया में ऊष्मा बनाये रखने के लिये जलावन की लकड़ी की तलाश में एक दिन वो बूढ़ा धरती पर बिछी बर्फ की मोटी परत पर व्यर्थ ही भटकता रहा ! उसे अहसास था कि ऊष्मा के बिना उसकी मृत्यु निश्चित है ! उस रात झोपड़ी के अंदर जल रहे , अलाव के अंतिम अंगारे को देख कर, वो आर्तनाद कर, स्वर्ग के देवता, किगी मैनिटो वाव-क्वी से, अपनी जीवन की रक्षा की याचना करने लगा !

इस बुरे समय में सर्द हवाओं ने उसकी कुटिया का दरवाजा ठोकरें मार मार कर तोड़ डाला था कि अचानक एक खूबसूरत युवती कुटिया में दाखिल हुई, उसके गाल गुलाब की तरह से सुर्ख / रक्तिम और उसकी आँखें बड़ी बड़ी, चांदनी सी चमकदार थीं ! उसके बाल रावेन के पंखों की तरह से गहरे स्याह और लंबे, उसके हाथों में रजनी गंधे जैसी कलियाँ और सिर पर जंगली फूलों की सजावट थी ! उसके कपड़े हरी मृदु घास और फर्न के जैसे तथा जूते नर्म श्वेत लिली की तरह के थे ! उसकी साँसों से कुटिया के अंदर की हवा गर्म होकर महक उट्ठी ! बूढ़े ने कहा इस उदास और ठंडी कुटिया में तुम्हारा स्वागत है पुत्री, ये तुम्हें बाहर की सर्द हवा से बचायेगी, इस अजब से लिबास में तुम कौन हो ? कहाँ से आयी हो ? आओ मेरे पास बैठो, कुछ अपनी जय की कथा कहो और कुछ मेरी भी सुनो...और फिर बूढ़े ने उस युवती से कहा, मैं मैनिटो हूं ! इसके बाद बूढ़े ने तम्बाखू की दो चिलम तैयार कीं, ताकि उसे पीते हुए, वे दोनों आपस में बात कर सकें, समय गुज़ार सकें ! तम्बाखू की गमक से बूढ़े की जुबान में तनिक ऊष्मा सी आई तो उसने दोबारा कहा, मैं मैनिटो हूं, जब मैं साँसे लेता हूं, तो झीलें  और झरने जम जाते हैं !

युवती ने जबाब में कहा कि मेरी साँसों से मैदानों में बसंत पसर जाता है और हर तरफ फूल खिल उठते हैं ! बूढ़े ने फिर से कहा मेरी सांसों से पूरी धरती बर्फ से ढँक जाती है ! इस पर युवती ने जबाब दिया कि जब मैं सांस लेती हूं, तो बादलों से गुनगुना पानी बरस पड़ता है ! युवती की बात को सुनकर बूढ़े ने एक बार फिर से कहा, मैं मैनिटो हूं ...जब मैं चलता हूं तो दरख्तों की टहनियों से पत्तियां नीचे गिर जाती हैं, मेरे इशारे पर जीव जंतु अपनी भूमिगत पनाहों में छुप जाते हैं और मुर्गाबियाँ पानी की सोहबत छोड़कर वापस उड़ जाती हैं ! इस पर युवती ने बूढ़े को जबाब देते हुए कहा कि जब मैं चलती हूं तो पौधे अपना सीना / शीर्ष तान लेते हैं, नग्न वृक्ष हरे पत्तों से लद जाते हैं, परिंदे वापस आ जाते हैं, जो मुझे देखता है , वो आनंद से भर जाता है और हर दिशा में संगीत गूँज उठता है ! जैसे जैसे वो दोनों आपस में बातें करते रहे, कुटिया सुगन्धित और गर्म होती रही...और फिर अचानक उस बूढ़े का सिर अपनी ही छाती पर झूल गया, वो गहन निद्रा में लीन हो गया था !

सुबह सुबह जब सूरज वापस लौटा, तब नीली चिड़ियां कुटिया की मुड़ेर पर बैठ कर गाने लगीं, हमें प्यास लगी है, हमें प्यास लगी है ! सेबिन (नदी) ने उनसे कहा, आओ आओ अब मैं मुक्त हूं, तुम पानी पियो ! युवती ने सोते हुए बूढ़े के सिर पर हाथ फेरा तो वह छोटा होने लगा, उसके मुंह में कैद पानी के सोते बाहर निकल भागे, वो धरती की सतह पर एक छोटे से द्रव्य में बदल गया और उसके कपड़े मुरझाई हुई पत्तियों के जैसे हो गये थे ! उस युवती ने घुटनों के बल झुक कर अपने प्रिय गुलाबी, सफ़ेद फूलों को उन मुरझाई हुई पत्तियों में छुपा दिया और उन पर अपनी साँसे छोड़ते हुए कहा...मैं तुम्हें अपनी साँसों की खुश्बू और अपने सभी गुण दे रही हूं, आज के बाद जो भी व्यक्ति तुम्हें चुनेगा / तोड़ेगा उसे अपने घुटनों पर झुकना होगा ! इसके बाद वो युवती लकड़ी के लट्ठों से गुज़रती हुई सपाट मैदानों की तरफ चली गई ! सारी चिड़ियाँ उसकी तारीफ में चहकने लगीं / गाने लगीं ! उसके कदम जहां भी पड़े, वहां फूल खिलने लगे, आर्ब्यूट्स, आदिम धरती के फूल, जो दुनिया में और कहीं नहीं खिलते ! 

स्थानीय अमेरिकन आदिवासियों की यह कथा मूलतः एक वृद्ध के हवाले से कही गई है, जो कि नितांत बर्फीले प्रदेश में लकड़ी की कुटिया बना कर रहता है, नि:संदेह उसकी गुज़र बसर का स्रोत स्थानीय नदी की मछलियाँ और उस भूभाग पर मिलने वाले पशु पक्षी रहे होंगे ! सर्दियों के मौसम में खास तौर पर उसका जीवन दूभर हो जाया करता होगा ! उसे इस कठिन समय में अपनी कुटिया और खुद को गर्म रखने के लिये जलाऊ लकड़ियों का अच्छा ख़ासा भण्डारण कर के रखना पड़ता होगा ! ऐसा लगता है कि अपनी बढ़ती हुई उम्र के कारण, कथा में उल्लिखित चरम शीतकाल के लिये वो पर्याप्त लकड़ियां इकट्ठी नहीं कर पाया होगा ! ये लोक कथा आदिम धरती में भीषण प्राकृतिक वातावरण में जीवन जी पाने की मानवीय कार्य दक्षता और हौसलों के इतर भी सन्देश देती है, उदाहरण के लिये प्राकृतिक औदार्यता, परिंदों की चहचहाहट, नदियों में कल कल बहते पानी और दूर दूर तक बिखरे हुए फूलों, माहौल में व्यापित सुंगंध और गुनगुनी धूप की उपलब्धता के लिये युवती के सामर्थ्य का वर्णन, स्पष्ट करता है कि आख्यान के समय के आदिम समाज में स्त्रियों की मौजूदगी कितनी ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई है !

बूढ़ा व्यक्ति, एक अनजान युवती को पुत्री कहते हुए तथा उसे अपना शरणागत मानते हुए, बाहरी विकट मौसम की तुलना में, अपनी कुटिया में उसके सुरक्षित बने रहने का आश्वासन देता है जबकि कुछ क्षण पहले वो स्वयं ही ईश्वर से अपने जीवन की भीख मांग रहा था ! सख्तजान सर्दीली हवाओं के कारण से उसकी  कुटिया का दरवाजा टूट चुका था, अलाव की लकड़ियों का आख़िरी टुकड़ा भी जलकर बुझने की कगार में था, इसके बावजूद वो बूढ़ा व्यक्ति, आगंतुक युवती को हौसला देता है और बातचीत में रात सुरक्षित गुज़र जाने का अप्रत्यक्ष संकेत भी !  जब आग लगभग बुझने की स्थिति में थी तब वह चिलम में तम्बाखू भरकर, उसकी उत्तेजना / मादकता से चरम शीत का मुकाबला करना चाहता है और आश्चर्यजनक रूप से उस युवती को भी चिलम सौंप देता है ! कहने का आशय यह कि तत्कालीन आदिम समाज में स्त्रियां, पुरुषों के समान मादक पदार्थ का सेवन करने के लिये स्वतंत्र थी, शायद वहां की जलवायु / मौसम के प्रतिरोध में ऐसा करना उचित भी माना गया हो ! ऐसा प्रतीत होता है कि चरम शीत के चलते और मृत्यु के आसन्न संकट के भय से बूढ़ा व्यक्ति संभ्रमित हो गया था !

वो स्वयं को बारम्बार मैनिटो कहते हुए,हिमाच्छादन के लिये उत्तरदाई मानता है,जिसके फलस्वरूप सुरक्षित स्थानों में छुप गये परिंदे और जीव जंतुओं को भी वो अपने इशारों पर नियंत्रित होने का व्यर्थ कथन करता है, अपनी उम्र के अनुकूल वो वृक्षों से पत्तों के क्षय को अपनी कदमों की धमक का परिणाम कहता है ! इस भ्रम काल में भी वह युवती की सुरक्षा का आश्वासन देकर यह संकेत देता है कि स्त्रियां, उसके समाज के लिये कितनी अधिक महत्वपूर्ण हैं और उनका सुरक्षित बने रहना कितना आवश्यक है,इसी तारतम्य में वह स्वयं के जीवन रक्षण के लिये ईश्वर से गुहार लगाना छोड़ कर, निज सामर्थ्य के बारे में निरंतर भ्रामक कथन करता रहता है, ताकि युवती अपनी सुरक्षा के लिये आश्वस्त बनी रहे ! इस कथा के अंत में युवती को दैवीय गुणों से संपन्न बतलाया गया है तथा उसके पदचिन्हों / उसकी चरणधूलि से आदिम धरती के खास फूलों से महक उठने का बयान किया गया है ! कुल मिलाकर ये कथा एक बूढ़े की जीवनचर्या से कहीं, अधिक एक स्त्री के माहात्म्य का वर्णन करती है !