कहते हैं कि एज़्टेक कबीले के सृजन की कहानी देवी क्वाटिलिक्वे
से शुरू होती है, जोकि सर्पों का परिधान पहनती और जिसके गले में नरमुंडों की माला पड़ी
रहती...जो गहन आत्मविश्वास की प्रतिमूर्ति है ! देवी क्वाटिलिक्वे, प्रथम बार,
लावा निर्मित कांच के चाकू से गर्भवती हो गई थीं और फिर उन्होंने, चंद्रमा की देवी
क्वोयोलशाऊकी तथा पुरुष वंशजों के एक समूह को जन्म दिया जोकि तारे बन गये थे ! एक
दिन देवी क्वाटिलिक्वे को पंखों का एक गोल पुलंदा मिला, जिसे उन्होंने अपनी सीने
में लपेट लिया लेकिन दोबारा देखने पर उन्होंने पाया कि पंखों का गोल पुलंदा गायब
हो चुका है और वो पुनः गर्भवती हो गई हैं, हालांकि उनकी पुत्री देवी चन्द्रमा और पुत्र
तारों को अपनी मां क्वाटिलिक्वे की इस कहानी पर ज़रा भी विश्वास नहीं हुआ और वे लोग
लज्जित अनुभव करने लगे, उन्होंने तय किया कि वे सभी मिलकर अपनी मां को मार डालेंगे
!
वे लोग, यही मानते थे कि कोई देवी, केवल एक बार ही
संतान को जन्म दे सकती है, जोकि उसके सच्चे देवत्व का प्रमाण होता है ! बहरहाल जब
वे लोग अपनी मां की हत्या की योजना बना रहे थे, तब, देवी क्वाटिलिक्वे ने अग्नि
सर्प की सहायता से, युद्ध के अग्नि देवता ह्यूइटज़िलीह्यूइटल को जन्म दिया, जिसने क्रोध में आकर अपने सभी भाइयों और
बहन क्वोयोलशाऊकी को मार डाला ! उसने बहन का सिर, धड़ से अलग करके, पर्वतों के मध्य
गहरे खड्ड में फेंक दिया, जहां वो सदा सर्वदा के लिये विखंडित पड़ा रहा ! ठीक उसी समय,
स्वर्ग लगभग टुकड़ों में तब्दील हो गया और धरती मां नीचे गिर गई थीं, जिनके निषेचित
बच्चों को, भ्रातघाती द्वारा टुकड़े टुकड़े कर के पूरे अंतरिक्ष में बिखेर दिया गया
था ! इस तबाही के उपरान्त मूल अमेरिकन इंडियंस का प्राकृतिक ब्रह्माण्ड जन्मा,तब सर्वोच्च
देवता ओमेटेकूटली और उसकी पत्नि ओमेसिहाउटल ने पूरे विश्व में जीवन का सृजन
किया...
एज़्टेक, अर्वाचीन कबीले के लोग हैं, अन्य आदिम जातीय समूहों की तरह
से सृष्टि की रचना को लेकर,उनकी अपनी परिकल्पनायें हैं ! उनके ब्रह्माण्ड की रचना
भले ही देवत्व धारी व्यक्तित्व करते हों पर...उन सभी देवी देवताओं में मनुष्यगत,
संवेदनाओं, भावनाओं, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, ईर्ष्या, द्वेष और कलह प्रियता जैसे,
लक्षणों का विवरण मिलना आम बात है जैसे कि इस कथा में देवी क्वाटिलिक्वे नरमुंड की माला पहनने वाली तथा सर्पों को
परिधान बतौर लपेटने वाली पारलौकिक शक्ति है, किन्तु वो ज्वालामुखीय लावे से
निर्मित कांच से गर्भवती होकर देवी चंद्रमा और तारों को जन्म देती है ! आख्यान में
उल्लिखित, इस देवी के, चमचमाते / रौशन रौशन / आलोकित, पुत्रों और पुत्री के जन्म
के लिये, चमकदार कांच के चाकू को उत्तरदाई ठहराना प्रातीतिक है, रुचिकर है ! कांच
के चाकू के...चांद सितारे जैसे बच्चे !
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अपनी मां को पुनः
गर्भवती देखकर देवी चन्द्रमा और पुत्र तारे क्षुब्ध हैं, उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि उन्हें, जन्म देने वाली दिव्य
शक्ति,पुनः गर्भवती हो सकती है, वे इसे दिव्यता पर कलंक मानकर लज्जित हैं और अपनी
कलंकित मां की हत्या का निर्णय ले लेते हैं, प्रतीत होता है कि मां के दोबारा
गर्भवती होने का मुद्दा वास्तव में, गर्भवती होने के कलंक से कहीं अधिक, दिव्यता
के प्रथम उत्तराधिकारियों तथा संभावित अतिरिक्त उत्तराधिकारी के मध्य, दिव्यता की
विरासत के, बटवारे का मुद्दा रहा होगा ! विरासत के बटवारे के निषेध के लिये,
गर्भवती मां को रास्ते से हटाने का निर्णय, ईर्ष्या जनित लगता है, बिलकुल मनुष्यों
के स्वभाव और व्यवहार के अनुकूल होने जैसा...सो कथा संकेत यही हैं कि झगड़े का मूल कारण विरासत थी, किन्तु उसे कांच के चाकू बनाम पंखों के पुलंदे से गर्भ धारण करने वाली
यौन अनैतिकता बतौर हवा दे दी गई !
कथा के अनुसार देवी क्वाटिलिक्वे सर्पों को परिधान
बतौर लपेटती थी सो उसने, अग्नि सर्प की मदद से, पंखों के पुत्र, युद्ध के अग्नि देवता
ह्यूइटज़िलीह्यूइटल को जन्म दिया,
जिसने दिव्यता की विरासत के दावेदार उन सभी लोगों को मार डाला जो कि उसके जन्म का
विरोध कर रहे थे, अतः एक ही मां की संतानों के मध्य वैमनस्य, ब्रह्माण्ड की
बर्बादी और पुनर्जीवन का आधार बना ! नरमुंडों और सर्पों वाली दिव्यता तथा विनाश के
बाद पुनर्सृजन के संकेत हमें अपनी पारलौकिक गाथाओं में भी मिलते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण
तथ्य यह कि प्रस्तुत कथा मनुष्यों की प्रातीतिक परछाईं के जैसे बहुदेवतावाद को समर्पित है, जिसमें सृष्टि के विनाश का कारण कोई एक
देवता है, तो सृजन के लिये उत्तरदाई कोई और...